ब्यूरो रिपोर्ट-सुरेश सिंह
पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद अर्जुन के पौत्र और राजा परीक्षित के पांचवी पीढ़ी में निचक्षु के शासन के दौरान गंगा की बाढ़ में हस्तिनापुर नष्ट हो गया, तब उन्होंने अपना नया राज्य कौशाम्बी में स्थापित कर लिया था, बताते हैं 550 ईसी पूर्व गौतम बुद्ध के समकालीन ही राजा शतानीक के पुत्र उदयन का जन्म हुआ था राजा उदयन के शासन काल में कौशाम्बी बहुत ही समृद्धशाली राज्य था, मध्य में होने के चलते यह नगर प्राचीन भारतीय संचार और नदी यातायात का जंक्शन बन गया था यहां भारी मात्रा में व्यापार होता था, यहीं के एक व्यापारी घोषिताराम ने राजा उदयन के किले के पास ही बुद्ध बिहार का निर्माण करवाया था, भगवान बुद्ध को 528 ईसा पूर्व के करीब बोध ज्ञान प्राप्त होने की बात बताई गई है जिसके बाद वह छठवें और नौवें साल में उपदेश देने कौशाम्बी नगर आए थे ।
यहीं पर महात्मा बुद्ध की उपस्थिति में बौद्ध संघ में पहला विभाजन हुआ था जो आगे चलकर हीनयान संप्रदाय का प्रमुख केंद्र घोषित हुआ, यहीं के राजघराने में जैन धर्म के छठवें तीर्थंकर पद्म प्रभु का जन्म हुआ उन्ही के वज़ह से यह स्थल श्वेतांबर संप्रदाय का प्रमुख केंद्र माना जाता है लेकिन अब यमुना के किनारे का यह स्थल समय की मार के चलते वीरान खंडहर के रूप में पड़ा है, साल 2018 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आए थे उन्होंने खंडहर को पर्यटन केंद्र बनाने के लिए इसे बौद्ध सर्किट से जोड़ने का ऐलान किया था, इसके बावजूद सर्वे का काम तो शुरू हुआ लेकिन अभी तक पर्यटकों के लिए रात्रि निवास की कोई सुविधा नहीं हो सकी है ।
भगवान बुद्ध के समय यह भारत के छह सबसे महत्वपूर्ण और समृद्ध नगरों में से एक था, बताया जाता है 600 ईसवी तक इसका ऐश्वर्य और महत्व बरकरार था इसी समय चीनी यात्री फाहियान और युआन चवंग ने नगर का दौरा किया था लेकिन इसके बाद अवंति और पाटिलीपुत्र राज्यों के टकराव से यहां का शासन धीरे धीरे कमजोर होता गया, पुरातत्व विभाग के उत्खनन में बौद्ध बिहार, पाषाण राज प्रसाद और किले में जले हुए अवशेष, हूण राजा तोरमाण की मुहरें मिली हैं, इन मुहरों में तोरमाण का नाम और हूणराज को उत्कीर्ण किया गया हैं जिससे पता चलता है कि हूणों ने आक्रमण के बाद यहां पर जमके लूट पाट किया था साथ ही किले, बस्तियों को आग लगाकर समृद्धविहीन कर दिया।
जानकार बताते हैं कि मुगल शासन के दौरान 1583 ईसवी के करीब बादशाह अकबर ने कौशाम्बी के गौरव अशोक स्तंभ को इलाहाबाद किले में उठवा ले गया, कहा जाता है कि उखड़वाने के दौरान स्तंभ बीच से टूट गया था जिसके बाद केवल स्तंभ के ऊपरी भाग को इलाहाबाद किला में स्थापित करवा दिया गया, अकबर के पुत्र जहांगीर ने 1605 ईसवी में अपने तख्त पर बैठने का वाकया इसी स्तंभ पर उत्कीर्ण कराया था, साल 1800 ईसवी में किले की प्राचीर सीधी बनाने हेतु इस स्तम्भ को गिरा दिया गया लेकिन इसकी महत्वता को देखते हुए 1838 के दौरान ब्रिटिश हुकूमत में अंग्रेज़ों द्वारा इसे पुन: खड़ा कराया गया जो अभी तक मिलिट्री छावनी में किला के अंदर मौजूद है ।
सरकारी सिस्टम की उपेक्षाओं के चलते महज फोरलेन निर्माण के बीच ही बौद्ध सर्किट सिमेट कर रह गया है पर्यटन के लिहाज से पर्यटकों के लिए यहां पर रात्रि विश्राम की कोई व्यवस्था अब तक नहीं हो सकी है, यहां पर लाइट, पानी, शौचालय की व्यवस्था भी चौपट हो गई है जिससे पर्यटकों को परेशानी होती है, गर्मी के दिनों में यात्रियों के लिए छाव की भी कोई व्यवस्था नहीं है ठीक से देखरेख नही होने के वजय से सरारती लोग संरक्षित अवशेषों को नुक्सान पहुंचा देते हैं ।
बाहरी पर्यटको के लिए यह स्थल प्रयागराज रेलवे स्टेशन से 60 से 70 किलो की दूरी पर है बम्हरौली एअरपोर्ट से भी यहां पर आसानी से पहुंचा जा सकता है वैसे तो यहां के लिए कोई विशेष साधन की व्यवस्था नहीं की गई है लेकिन निजी साधनों जैसे बस, कार, आटो, विक्रम टैक्सी, ई-रिक्शा, मोटर साइकिल से यहां पर पहुंचा जा सकता है आसान तौर पर जाने तो यह स्थल कौशाम्बी थाना के समीप ही स्थित है ।
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