रिपोर्ट- ईश्वर दीन साहू
कौशाम्बी : जनपद में उदहिन बुजुर्ग बाजार में चल रही दस दिवसीय रामलीला के सातवें दिन भगवान राम चन्द्र जी के वन गमन की लीला दिखाई गई। भगवान राम जी के शुभ विवाह के कुछ दिन बाद अयोध्या नरेश महाराज दशरथ ने विचार किया कि राम को अयोध्या का राजा बनाया जाए। उन्होंने अपने मंत्री सुमंत को बुलाकर भगवान राम को राजा बनाए जाने एवं जल्द से जल्द रामचन्द्र जी के राज्याभिषेक करने का आदेश दिया। यह सूचना जैसे ही महारानी कैकेई की दासी मंथरा को प्राप्त हुई, मंथरा ने महारानी के कान भरना शुरू कर दिया। महारानी कैकेई मंथरा की बातों को मानकर राजा दशरथ से अपने पुराने दो वरदान मांगे। राजा दशरथ ने महारानी कैकेई को दोनों वरदान देने का निर्णय करते हुए कहा कि हम रघुवंशी हैं, हम अपने दिए गए वचन को निभाने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। महराज दसरथ ने कहा कि रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई.. राजा दशरथ से महारानी कैकेई ने कैकेई पुत्र भरत को राजतिलक और कौशल्या पुत्र राम को चौदह वर्ष का वनवास मांगा। यह सूचना जैसे ही भगवान राम को मिली, भगवान राम तुरन्त वन गमन को तैयार हो गए। जैसे ही भगवान राम के वन गमन की सूचना महराज दसरथ को हुई, वो विचलित और व्याकुल हो गए। जैसे ही भगवान राम, सीता जी और लक्ष्मण जी के साथ वन गमन करने को प्रस्थान किया, राजा दशरथ फूट फूट कर रोने लगे और पूरी अयोध्या नगरी में शोक छा गया। भगवान राम के साथ अयोध्या के हजारों नर, नारी भी वन गमन करने को तैयार हो गई। इसके बाद भगवान राम तमसा नदी के किनारे पहुंचे जहां उन्होंने रात्रि विश्राम किया। इस मौके पर राम जानकी दशहरा मेला कमेटी के मुख्य संरक्षक डॉ राजेंद्र प्रसाद, संरक्षक ग्राम प्रधान दशरथ लाल, महासचिव कल्लू केसरवानी, उपाध्यक्ष बृजेन्द्र तिवारी, ज्ञान प्रकाश केसरवानी, शैलेन्द्र श्रीवास्तव, नरेंद्र दुबे, शिवम सोनी, टिंकू मौर्य आदि मौजूद रहे।
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