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अंग्रेजों के जुल्मों सितम की गवाह है आलम चंद्र गांव की नील फैक्ट्री, जबरन किसानों से कराते थे नील की खेती...

ब्यूरो रिपोर्ट-सुरेश सिंह

कौशाम्बी :  जनपद में चायल तहसील अंतर्गत विकास खंड मूरतगंज के ग्राम पंचायत आलम चंद्र में मौजूद दो सौ साल पुरानी नील फैक्ट्री इस बात की गवाह है कि उस दौर में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा किसानों पर जुल्मों सितम ढाया जाता था, अंग्रेजों द्वारा तीन कठिया कानून के तहत जबरन किसानों की खेती कराई जाती थी और नील की फ़सल को खेतों से कटवा कर नील फैक्ट्री तक मुक्त में लाने की प्रक्रिया कराई जाती थी जो किसान यह करने से मना कर देता था उसे अंग्रेज के सिपाहियों द्वारा 100 कोड़ों की मार और जुर्माना लगाकर प्रताड़ित किया जाता था ।

बताते चलें कि उन दिनों यूरोपीय देशों और विश्व में नील की काफी खपत थी, अंग्रेजों ने इस व्यवसायिक संभावना में मोटे मुनाफे का अवसर देखा था अंग्रेज भारत में किसानों से जबरदस्ती नील की खेती करवाते फिर उस नील को नाम मात्र के मूल्य पर खरीद के विदेशों में बेचकर बड़ा लाभ कमाते थे, अंग्रेज बागान मालिक और जमींदार दोनों ही किसानों के शोषण में शामिल थे, हालात यह थे कि किसान खुद खाने के लिए चावल की खेती भी नहीं कर पाते थे, प्रयागराज सहित पूरे भारत में किसानों के साथ यही हाल था ब्रिटिश सरकार किसानों को नील के बाजार भाव का 2.5% मूल्य देती थी, अधिकांस मुफ्त में ही लेते थे ।

अंग्रेज़ों के इसी अत्याचार के चलते साल 1859-60 में नील विद्रोह का आंदोलन शुरू हो गया था, क्रांतिकारी नेताओ के आवाहन पर किसानों ने पूरी तरह से नील की खेती करना बंद कर दिया और अंग्रेजों के खिलाफ आवाज़ उठाना शुरू कर दिया, गांव के बड़े बुजुर्ग जानकार बताते हैं कि प्रयागराज के आसपास जिलों के लिए महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे उन्होंने स्थानीय क्रांतिकारियों से मिलकर नील विद्रोह का बिगुल फूंक दिया था जिसके बाद अंग्रेजों की नील फैक्ट्रियां बंद पड़ गई थी, लेकिन आलम चंद गांव में बनी नील फैक्ट्री उस दौर में किसानों के ऊपर अंग्रेजों द्वारा किए गए जुल्मों सितम की आज भी गवाही दे रही है ।

आलम चंद्र गांव के रहने वाले स्थानीय पत्रकार वीरेंद्र कुमार बाल्मीकि ने टी बी न्यूज़ को बताया कि हमारे पूर्वजों से अंग्रेज इसी नील कारखाना में कोड़ों के दम पर काम कराया करते थे नील की खेती कराकर उनसे बंधुआ मजदूर की तरह कार्य लेते थे तीन बीघा की खेती में किसानों को एक बीघा में केवल नील की खेती करनी होगी, यही तीन कठिया कानून अंग्रेजों ने किसानों पर लागू किया था, ऐसी ही तमाम कहानी जीर्ण शीर्ण पड़ा यह नील कारखाना अपने अंदर समेटे हुए है, जानकारों के अनुसार 1835 से लेकर 1914 तक नील कारखानों की कमान जेम्स हेनेसी नाम के अंग्रेजी अफसर के हाथो में थी, विद्रोह के बाद अंग्रेजी सरकार ने दूसरे अधिकारी को यह कमान सौंप दी थी, स्वतंत्रता सेनानी मौलवी लियाकत अली ने भी आलम चन्द्र गांव समेत कई स्थानीय आस पास के गांवों में बने नील कारखानों पर विद्रोह में किसानों का समर्थन किया था । 

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