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बुन्देलखण्ड के इस गांव में होती है कुतिया महारानी की पूजा, बना है मंदिर, आइए जानते हैं क्या है पूरी कहांनी...

रिपोर्ट-अमित मिश्रा


झांसी : भारत देश में कुछ भी हो सकता है, कभी आस्था में तो कभी अंधविश्वास को मानने वाले लोग करते हैं, एक ऐसा ही स्थान हमें देखने को मिला जहां सड़क किनारे बने एक छोटे से मंदिर में कुतिया की प्रतिमा की पूजा होती है।

आपको जानकर थोड़ी हैरानी जरुर होगी लेकिन लेकिन हमारे देश और खासकर बुन्देलखण्ड में कुछ भी संभव हो सकता है, जब मीडिया की टीम मऊरानीपुर से ग्रामीण क्षेत्र की तरफ जा रही थी तो वहां हमारी नज़र सड़क के किनारे बने एक मंदिर पर पड़ी, जिस मंदिर में किसी देवी देवता के स्थान पर एक कुतिया की प्रतिमा बनी हुई थी, इतना ही नहीं हमने लोगों से बात की तो पता चला कि बाकायदा उस मंदिर में कुतिया महारानी की पूजा भी होती है, सबसे पहले हमने वहां मौजूद एक किसान से बात की जिसने बताया कि उसे इस कुतिया महारानी के इतिहास के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता लेकिन उसे यह बताया गया है कि इनकी पूजा से उसे जीवन में कठिनाईयां नहीं होंगी, युवा किसान से बात करके यह भी पता चला कि जब गांव में कोई शादी होती है और दुल्हन को लेकर गाड़ी यहां से गुजरती है तो कुतिया महारानी के मंदिर पर नारियल फोड़ा जाता है ।

कुतिया महारानी के बारे में क्या कहते हैं गांव के जानकर....

जब हमने गांव में प्रवेश किया और गांव के जानकार लोगों से बात की तो उन्होने इसे स्पष्ट किया कि यह मंदिर कई बहुत पुराना है जिसको लेकर एक कहानी भी प्रचलित है, कुतिया के मंदिर के बार में बताया गया कि लोग बचपन से इस मंदिर को देख रहे हैं जिसमें कुछ लोग आस्था रखते हैं तो कुछ लोग इसे अंधविश्वास बताते हैं, दरअसल वर्षों पहले ग्राम रेवन और ककवारा गांव के बीच एक कुतिया रहती थी। गांव के लोग इस कुतिया से बड़ा स्नेह रखते थे, यह कुतिया जिस दरवाजे पर पहुंचती लोग उसे खाना देते थे। ऐसे में जब किसी के घर में शादी होती थी तो उस समय तो जैसे इस कुतिया की दावत हो जाती थी। वैसे तो यह पशु बहुत ही समझदार होते हैं और इंसानों के बीच रहकर उनकी गतिविधियों को भी समझने लगते हैं। एक समय ऐसा था जब दोनों गांव में एक ही दिन शादियां थीं, अमूमन शाम के समय गांव के लोगों की पंगत यानि कि खाने पीने का आयोजन होता है, वहीं बुन्देलखण्ड में एक पुरानी प्रथा भी थी कि खाने का समय निर्धारित होता था और जब खाने का समय पूर्ण हो जाता था तो एक विशेष बुन्देली बाध्य रमतूला बजा दिया जाता था, जिसकी ध्वनि से लोग समझ जाते थे कि शादी की कार्यक्रम में खाने का समय समाप्त हो गया है।


ऐसे में उस दिन यह यह कुतिया पहले ग्राम ककवारा पहुंची जहां उसने देखा कि शादी की तैयारियां हो रही थीं लेकिन खाने में कुछ समय था, उसे भूख जोरों की लगी थी साथ ही पशु की जात खाने पीने की बड़ी लालची होती है, इसलिए वह बिना सोचे हुए ग्राम रेवन की बढ़ चली लेकिन जब तक कुतिया गांव में उस स्थान तक पहुंची ही थी कि तभी रमतूला बज गया, इसके बाद कुतिया ने फिर से गांव ककवारा जाने की ठानी और लम्बा रास्ता तय करने निकल पड़ी, लेकिन समय अधिक बीत चुका था और जैसे ही वह ग्राम ककवारा के पहले पहुंची तभी उसे इस गांव से भी रमतूले की आवाज सुनायी दी जिससे एक भूखा पशु इतना हताश हो गया कि उससे दो कदम भी नहीं चला जा सका और कुतिया ने वहीं दम तोड़ दिया ।

इस विषय पर ककवारा गांव के बुजुर्ग जानकार बाल किशुन और पुरूषोत्तम नारायण का कहना है कि....


पुराने लोग बताते हैं कि इस स्थान पर पहले एक कचचा चबूतरा हुआ करता था जहां कुछ लोग पूजा करने आते थे इसके बाद यहां पर कुद वर्षों पूर्व लोगों की आस्था को ध्यान में रखते हुए एक पक्का चबूतरा बनाकर कुतिया महारानी का मंदिर बना दिया गया ।

जहां आज भी कुछ आस्था रखने वाले लोग पूजा करने आते हैं । कुछ लोग यह भी बताते हें कि यहां बहुत पहले कुतिया महारानी का मंदिर बना हुआ था जहां एक प्रतिमा भी स्थापित थी लेकिन उसे टोड़ीफतेहपुर रियासत के महाराज अपने यहां ले गए थे उसके बाद आज जब टोडी किला भी खंडहर हो चुका है तब उस मूर्ति का पता नहीं कि वह कहां गई, बुन्देलखण्ड में ऐसे कई आश्चर्यचकित करने वाली कहानियां और उनके प्रमाण देखने को मिलते हैं जो कभी आस्था तो कभी अंधविश्वास की कहानी को उजागर करते हैं ।

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