रिपोर्ट-न्यूज़ एजेंसी
लखनऊ : भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के 15 दिन बाद ही राधा अष्टमी होती है राधाष्टमी की पूजा के बिना जन्माष्टमी पूजा अधूरी मानी जाती है, राधा अष्टमी का व्रत करने से जीवन में प्रेम, सुख-समृद्धि, शांति का वास होता है मान्यता है कि जन्माष्टमी की पूजा का फल तभी पूरा मिलता है जब राधाष्टमी का व्रत और पूजन भी किया जाए, मथुरा, वृंदावन और बरसाने राधा अष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव जैसा ही उत्साह रहता है पंचाग के अनुसार राधा रानी का जन्म भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था ।
राधा अष्टमी पर राधा रानी और भगवान कृष्ण की पूजा आराधना करने से दांपत्य जीवन में सुख और समृद्धि का वास होता है, राधा अष्टमी को सूर्योदय से पूर्व स्नान कर देवी की पूजा की पूजा और व्रत का संकल्प लें, इसके बाद पूजा स्थल पर एक कलश में जल भरकर रखें, एक चौकी पर लाल या पीले रंग का वस्त्र बिछा दें और इस पर देव राधा की प्रतिमा के साथ भगवान श्रीकृष्ण को भी स्थापित करें, इसके बाद राधा रानी को पंचामृत से स्नान कराके वस्त्र व आभूषणों से श्रृंगार करें, इसके बाद फल-फूल और मिष्ठान अर्पित करें और राधा कृष्ण के मंत्रों का जाप करें साथ ही इस दिन देवी के जन्म की कथा का श्रवण अवश्य करें ।
आखिरी में राधा कृष्ण की आरती करें क्योंकि कृष्ण प्रिया की आराधना अत्यंत लाभकारी मानी गई है धर्म ग्रंथों में राधा के बिना श्याम की पूजा अधूरी मानी गई है कृष्ण जन्माष्टमी के पंद्रह दिन बाद राधा जयंती मनाई जाती है, इस दिन राधा रानी की पूजा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है राधा अष्टमी के दिन सुहागिन महिलाओं को व्रत रखने और विधिवत पूजा करने से संतान सुख मिलता और सुख समृद्धि में वृद्धि होती है मान्यता है कि राधा रानी की उपासना से कृष्ण प्रसन्न होते हैं ।
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