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जानिए कैसे हुई तेजा दशमी पर्व की शुरुआत, देश के कई प्रांतों में बड़े विश्वास के साथ मनाया जाता हैं तेजा दशमी का पर्व...

रिपोर्ट-न्यूज एजेंसी 

लखनऊ : देश के कई प्रांतों में प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को तेज दशमी पर्व मनाया जाता है, मान्यतानुसार नवमी की पूरी रात रातीजगा करने के बाद दूसरे दिन दशमी को जिन जिन स्थानों पर वीर तेजाजी के मंदिर हैं वहां मेला लगता है, हजारों की संख्या में श्रद्धालु नारियल चढ़ाने एवं बाबा की प्रसादी ग्रहण करने तेजाजी मंदिर में जाते हैं, देश के कई प्रांतों में तेजा दशमी का पर्व श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास के प्रतीकस्वरूप मनाया जाता है मत मतांतर से यह पर्व मध्यप्रदेश के मालवा निमाड़ के तलून, साततलाई, सुंद्रेल, जेतपुरा, कोठड़ा, टलवाई खुर्द आदि गांवों में नवमी एवं दशमी को तेजाजी की थानक पर मेला लगता है, बाबा की सवारी वारा जिसे आती है, उसके द्वारा रोगी, दुःखी, पीड़ितों का धागा खोला जाता है एवं महिलाओं की गोद भरी जाती है सायंकाल बाबा की प्रसादी चूरमा एवं विशाल भंडारा आयोजित किया जाता है तेज दशमी पर्व पर तेजाजी मंदिरों में वर्षभर से पीड़ित, सर्पदंश सहित अन्य जहरीले कीड़ों की तांती धागा छोड़ा जाता है, माना जाता है कि सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति, पशु यह धागा सांप के काटने पर बाबा के नाम से पीड़ित स्थान पर बांध लेते हैं। इससे पीड़ित पर सांप के जहर का असर नहीं होता है और वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाता है, दंतकथाओं और मान्यताओं को मानें और साथ ही इतिहास भी देखें तो वीर तेजाजी का जन्म विक्रम संवत 1130 माघ शुक्ल चतुर्दशी गुरुवार 29 जनवरी 1074 के दिन खरनाल में हुआ था नागौर जिले के खरनाल के प्रमुख कुंवर ताहड़जी उनके पिता थे और राम कंवर उनकी मां थी, दंतकथाओं में अब तक बताया जा रहा था कि तेजाजी का जन्म माघ सुदी चतुर्दशी को 1130 में हुआ था जबकि ऐसा नहीं है तेजाजी का जन्म विक्रम संवत 1243 के माघ सुदी चौदस को हुआ था। वहीं दंतकथाओं में तेजाजी की वीर गति का साल 1160 बताया गया है जबकि सच यह है कि तेजाजी को 1292 में वीर गति अजमेर के पनेर के पास सुरसुरा में प्राप्त हुई थी हालांकि तिथि भादवा की दशम ही है, कहते हैं कि भगवान शिव की उपासना और नाग देवता की कृपा से ही वीर तेजाजी जन्मे थे जाट घराने में जन्मे तेजाजी को जाति व्यवस्था का विरोधी भी माना जाता है, हुआ यूं कि वीर तेजाजी का विवाह उनके बचपन में ही पनेर गांव की रायमलजी की बेटी पेमल से हो गया, पेमल के मामा इस रिश्ते के खिलाफ थे और उन्होंने ईर्ष्या में तेजा के पिता ताहड़जी पर हमला कर दिया, ताहड़ जी को बचाव के लिए तलवार चलानी पड़ी, जिससे पेमल का मामा मारा गया, यह बात पेमल की मां को बुरी लगी और इस रिश्ते की बात तेजाजी से छिपा ली गई, बहुत बाद में तेजाजी को अपनी पत्नी के बारे में पता चला तो वह अपनी पत्नी को लेने ससुराल गए वहां ससुराल में उनकी अवज्ञा हो गई, नाराज तेजाजी लौटने लगे तब पेमल की सहेली लाछा गूजरी के यहां वह अपनी पत्नी से मिले, लेकिन उसी रात मीणा लुटेरे लाछा की गाएं चुरा ले गए, वीर तेजाजी गाएं छुड़ाने के लिए निकल पड़े, रास्ते में आग में जलता सांप मिला जिसे तेजाजी ने बचाया, लेकिन सांप अपना जोड़ा बिछड़ने से दुखी था इसलिए उसने डंसने के लिए फुंफकारा, वीर तेजाजी ने वचन दिया कि पहले मैं लाछा की गाएं छुड़ा लाऊं फिर डंसना, मीणा लुटेरों से युद्ध में तेजाजी गंभीर घायल हो गए लिकिन इसके बाद भी वह सांप के बिल के पास पहुंचे, पूरा शरीर घायल होने के कारण तेजाजी ने अपनी जीभ पर डंसवाया और भाद्रपद शुक्ल 10 दशमी संवत 1160 28 अगस्त 1103 को उनका निर्वाण हो गया, यह देख पेमल सती हो गई, इसी के बाद से राजस्थान के लोकरंग में तेजाजी की मान्यता हो गई, गायों की रक्षा के कारण उन्हें ग्राम देवता के रूप में पूजा जाता है, मिनाग ने भी उन्हें वरदान दिया था उस दिन से तेजादशमी पर्व मनाने की परंपरा जारी है, दंत कथाओं में तेजाजी के चार से पांच भाई बताए गए थे जबकि वंशावली के अनुसार तेजाजी तेहड़जी के एक ही पुत्र थे तथा तीन पुत्रियां कल्याणी, बुंगरी और राजल थी, तेजाजी के पिता तेहड़जी के कहड़ जी, कल्याणजी, देवसी, दोसोजी चार भाई थे, जिनमें देवसी की संतानों से आगे धोलिया गौत्र चला, दक्लक्षया वंश की उत्पति खरनाल से ही हुई थी, इसके बाद विक्रम संवत 1650 में कुछ लोग गांव छोड़कर दूसरी जगहों पर जाकर बस गए जिससे राज्य भर में धोलिया जाति फैल गई ।

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