रिपोर्ट-प्रिस मिश्रा
लखनऊ : जिस पौधे की चर्चा हम करने जा रहे हैं इसे सिन्दूर या कुमकुम कहा जाता है सिन्दूर का भारतीय संस्कृति में बड़ा महत्व है, ख़ासकर उन माहिलावों के लिये जो सुहागिन होती है शादी के समय बर पक्ष द्वारा लकड़ी से बना सिंधोरा दिया जाता है जो सिंदूर से भरा होता है, सिंधोरा लाल रंग का होता है जिसे सुहागिन अपने पास सँभाल कर रखती है बाज़ार का सिंदूर केमिकल से बना होता है, जिससे त्वचा को नुक़सान होता है सिंदूर के पौधे में हल्के गुलाबी रंग के फूल आते है जो दिसंबर तक फलों के गुच्छों में बदल जाते हैं इसको तोड़नें पर गाढ़ा लाल रंग निकलता है जिसे सिंदूर कहते है पकने पर बीज निकलते हैं, जिन्हें पीस कर पाउडर बनाया जा सकता है और इसमें दो बूँद पानी डालकर कुमकुम तैयार किया जा सकता है और इसे सुहागिनें सिंदूर के रूप में प्रयोग कर सकती हैं ।
व्यवसायिक तौर पर इसका प्रयोग खाद्य पदार्थों को रंगने के लिए किया जाता है और सौंदर्य प्रसाधनों में भी इसका प्रयोग किया जाता है इसके पके बीज से पौधा तैयार किया जा सकता है इनके वृक्ष के नीचे जो बीज गिरते है वह बरसात में उग जाते है इन्हें गमलों में लगाया जा सकता है पूरी तरह से बड़े और तैयार होकर यह अपनी छटा बिखेरते हैं, इनके फूल देखने में बहुत सुंदर लगते हैं इन्हे पूजा पाठ में भी प्रयोग किया जा सकता है, जहां इन दिनों बाजारों में मिलने वाला सिंदूर केमिकल युक्त होता है जिसे लगाने पर या इस्तेमाल करने में महिलाओं को कई बीमारियों से जूझना पड़ता है ।
वहीं इस पेड़ से निकले वाले सिंदूरी रंग का इस्तेमाल करके केमिकल से होने वाले दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है इस पौधे के बीज से निकलने वाले सिंदूरी रंग को कुमकुम या पूजा हवन के बाद टीके तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है ।
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