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जानिए बड़ोग रेलवे सुरंग की डरावनी कहानी, जहां रहता है अंग्रेज अधिकारी कर्नल का भूत...

रिपोर्ट-न्यूज़ एजेंसी 

सोलन : बड़ोग हिमाचल प्रदेश राज्य के सोलन ज़िले में स्थित एक छोटा सा शहर है इसी नाम से वहीं पर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल कालका शिमला रेलवे का एक स्टेशन है पहाड़ों में स्थित बड़ोग चंडीगढ़ शिमला राजमार्ग यानी राष्ट्रीय राजमार्ग 5 पर चंडीगढ़ से 60 किमी दूर है, बतादें कि 20वीं सदी में बनाई गई इस सुरंग का नाम ब्रिटिश इंजीनियर कर्नल बड़ोग के नाम पर रखा गया था इसको बनाने के पीछे कर्नल बड़ोग की दुखभरी कहानी है, बड़ोग रेलवे स्टेशन के पास है बड़ोग सुरंग मौजूद हैं जिसे सुरंग नंबर 33 भी कहा जाता हैं 1143.61 मीटर लंबी यह सुरंग हॉन्टेड प्लेसेस में शुमार है यह दुनिया की सबसे सीधी सुरंग है जिसे पार करने में ट्रेनों को ढाई मिनट का समय लगता है ।

ब्रिटिश हुकूमत में इस सुरंग को बनाने की जिम्मेदारी ब्रिटिश इंजीनियर कर्नल बड़ोग को दी गई थी, सुरंग को बनाने में कर्नल ने सबसे पहले पहाड़ का निरीक्षण किया फिर उसके दो छोर पर मार्क लगाए और मजदूरों को दोनों छोर से सुरंग खोदने के ऑर्डर दे दिए, उनका अंदाजा था कि खुदाई करते करते दोनों सुरंगें बीच में आकर मिल जाएंगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि सुरंग की खुदाई दूसरे एंगल में चली गई, इस बात से काम में लगे मजदूर और ब्रिटिश सरकार के बड़े अधिकारी उनसे नाराज़ हो गए, सरकार ने कर्नल बड़ोग को सरकारी धन बरबाद करने का दोषी करार दे दिया, जिसके बाद अधिकारियों ने उन पर 1 रुपए का जुर्माना लगाकर उन्हें निलंबित कर दिया, ब्रिटिश सरकार के इस फैसले ने बड़ोग को तोड़कर रख दिया था निलंबन से वह अपनी बेइज्जती महसूस करके परेशान रहने लगे थे ।

उसी दौरान एक दिन सुबह वह अपने कुत्ते को लेकर इसी सुरंग की तरफ टहलने निकले थे बताते हैं इसी सुरंग के नजदीक कहीं पर कर्नल ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर लिया, जिसके बाद उनके शव को अंग्रेजों ने यहीं कहीं आसपास ही दफना दिया, जबकि रेल सुरंग का काम अधूरा पड़ा हुआ था इस पर ब्रिटिश सरकार ने दोबारा काम शुरू कराते हुए सन 1900 में दूसरे ब्रिटिश इंजीनियर एचएस हर्लिंगटन को सुरंग बनाने का काम सौंप दिया, जानकार बताते हैं कि ब्रिटिश अभियंता हर्लिंगटन ने दोबारा पूरे पहाड़ का निरीक्षण करने के बाद दूसरी जगह से सुरंग का बनाने का कार्य शुरू कराया था लगभग साल 1903 आते आते सुरंग पूरी तरह से बनकर तैयार हो गई ।

सुरंग तैयार होने के बाद ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों को लगा कि उन्होंने इसी सुरंग के चलते अपना एक काबिल कर्नल को खो दिया है अब उनके सम्मान में इस टनल यानी सुरंग का नाम बड़ोग सुरंग रख दिया जाए, जिसके बाद इस सुरंग का नाम बड़ोग सुरंग रखकर रेल आवागमन को शुरू करा दिया गया, ऐसी कहानी प्रचलित है कि एचएस हर्लिंगटन भी इस सुरंग का काम पूरा नहीं कर पा रहे थे आखिरकार वहीं चायल कस्बे के रहने वाले एक बाबा भलकु नाम के साधू ने इस काम को पूरा कराने में उनकी काफी मदद किया, शिमला गैजेट के मुताबिक बाबा भलकु ने इस लाइन पर कई अन्य सुरंगें खोदने में भी ब्रिटिश सरकार की मदद की थी इस मदद से खुश होकर अंग्रेजी सरकार ने बाबा को पगड़ी और अन्य कई तरह के उपहार देकर सम्मानित किया था ।

समयनुसार बाबा के योगदान को देखते हुए उनके नाम से रेलवे ने बाबा भलकु नाम का एक संग्रहालय भी बनवाया है जो उनकी याद में बनवाया गया है, बात करें बड़ोग सुरंग की तो कहा जाता है कि इंजीनियर कर्नल बड़ोग की मौत के बाद यहां अप्रिय घटनाएं होने लगी थीं कई लोगों को इंजीनियर की आत्मा दिखाई देने लगी थी, लोगों ने बाद में यहां एक मंदिर बनवा दिया जिसमें पूजा अर्चना कराई गई लेकिन इसके बावजूद भी कई लोग की कहना था कि यहां इंजीनियर बड़ोग के चिल्लाने की आवाजें सुनाई देती हैं, यहां के आसपास की बस्तियों में लोग किस्से कहानियों के तहत बताते हैं कि उन्होंने सुरंग के आसपास बड़ोग के भूत से बातचीत किया है उनके साथ बैठकर हंसी मजाक भी कर चुके हैं ।

लोगों का मानना है कि बड़ोग का भूत बेहद ही दोस्ताने अंदाज में लोगों से मिलता है और आज भी भूत को अपने किए गए गलत कार्य का पछतावा है, कर्नल बड़ोग ने जिस सुरंग का निर्माण कार्य शुरू कराया था वह बड़ोग रेलवे स्टेशन से काफी दूर स्थित है फिलहाल उस सुरंग को दरवाजा लगाकर बंद कर दिया गया है वहां पर पुलिस द्वारा लोगों को आने जाने पर पाबंदी लगा दी गई है, यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि आज भी बड़ोग रेलवे टनल यानी सुरंग के पास रात और दिन के सन्नाटों में ब्रिटिश अधिकारी कर्नल बड़ोग की आत्मा की आहट महसूस होती रहती है ।

बड़ोग रेलवे सुरंग के समीप ही एक छोटा रेलवे स्टेशन पुराने समय से मौजूद है यहां पर पर्यटक और यात्रियों को रोकने के लिए रेस्टोरेंट की भी व्यवस्था मिल जाती है, इस लाइन के रास्ते पर 103 टनल यानी सुरंगे मिलती है पहले इनकी संख्या 107 हुआ करती थी, यह जगह डरावनी जरूर है लेकिन फिर भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है यहां पर आने वाला हर व्यक्ति इसके रहस्य से जुड़ जाता है, रेलवे विभाग द्वारा यहां पर एक शिलपट्ट भी लगाया गया है जिसमें कर्लन बड़ोग से जुड़ी हुई इस सुरंग की महत्वपूर्ण जानकारी लिखी गई है ।

शिलपट्ट में लिखा गया है कि यह सुरंग देव भूमि हिमांचल में स्थित कालका शिमला रेल खंड पर 1143.61 मीटर लम्बी खंडित सैंड स्टोन में से गुजरती है जो यहां की सबसे लंबी सुरंग मानी जाती है, यह बहुत समय तक भारत की दूसरी सबसे लम्बी सुरंग थी इसका निर्माण मुख्य अभियंता एचएस हैरिंगटन के पर्यवेक्षण में स्थानीय साधू भलकु के मार्ग दर्शन से सन 1900 से लेकर 1903 तक के छोटे से अंतराल में 8 लाख 40 हजार रुपए की लागत में हुआ था ।

इसका नाम एक अंग्रेजी रेलवे इंजिनियर जिसका नाम बड़ोग था पर रखा गया है जो कि पहले इस सुरंग के निर्माण के प्रभारी थे उनकी गलती से सुरंग के दोनों छोर मिल नहीं पाये थे जिस कारण अंग्रेजी सरकार ने 1 रुपए का दंड दिया था, लेकिन उन्होंने शर्मिन्दगी महसूस करते हुए आत्महत्या कर लिया, वह नाकामयाब सुरंग आज भी यहां से करीब एक किलोमीटर की फसलें पर स्थित है ।

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