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कुरई घाट पर आये थे भगवान श्रीराम, केवट ने कराया था गंगा पार, त्रेता युग से जुड़ा है कुरई घाट का इतिहास...

ब्यूरो रिपोर्ट-सुरेश सिंह

कौशाम्बी : जनपद में चायल तहसील अंतर्गत विकास खंड मूरतगंज की ग्राम पंचायत कुरई एक पौराणिक स्थली मानी जाती है रामायण जैसे धर्म ग्रंथों में कई बार श्रृंगवेरपुर और कुरई का उल्लेख मिलता है बात उस समय की है जब त्रेतायुग में भगवान श्री राम 14 वर्ष के वनवास के लिए निकले थे तो निषादराज गुह के राजधानी श्रृंगवेरपुर से गंगा पार करते हुए इसी स्थान पर आकर कुछ पर विश्राम किए थे आज भी उनका विश्राम स्थल मौजूद है, जहां पर उन्होंने भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी वह मंदिर भी मौजूद है लेकिन कहीं ना कहीं उपेक्षाओं के चलते यह धार्मिक स्थान ज्यों का त्यों पड़ा हुआ है, प्रयागराज रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट बम्हरौली से इस स्थान की दूरी लगभग 30 किलोमीटर के आसपास है वहीं कानपुर मार्ग से तेरह मील और इमामगंज चौराहे से यहां तक पहुंचा जा सकता है, हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य सड़क परियोजना के तहत राम वन गमन मार्ग बनाने की शुरुआत कर दी है यह राम वन गमन मार्ग चित्रकूट के राजापुर तक जाएगा, लेकिन पहले यह कुरई घाट से होकर बनना था अब इसकी दिशा बदल दी गई, जिससे कुरई गांव के स्थानीय लोगों में नाराजगी है, कुरई मोहद्दीनपुर गौस के रहने वाले लोक गायक कैलाश नाथ निषाद जख्मी बताते हैं कि भगवान श्रीराम को पार उतारने वाले हमारे पूर्वज थे वह निषाद राज गुह के साथ इसी कुरई घाट पर आए थे और कुछ पहर यहीं पर विश्राम किया था जिसके बाद संगम नगरी में स्थित भरद्वाज आश्रम के लिए प्रस्थान कर गए थे ।

पहले जिला इलाहाबाद में जाना जाता था शास्त्रों में कहा गया है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रयागराज में ही प्रथम यज्ञ किया था, इसी प्रथम यज्ञ के ‘प्र’ और ‘याग’ अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना है इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु हैं और वे यहां वेणीमाधव रूप में विराजमान हैं भगवान के यहां बारह स्वरूप विद्यमान हैं, जिन्हें ‘द्वादश माधव’ कहा जाता है सबसे बड़े महाकुंभों की चार स्थलियों में से प्रयाग भी है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन और नासिक हैं, पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों ने राम वन पथ से जुड़े कई पुरातात्विक स्थलों का पता लगाया है इसके लिए 70 स्थानों पर खुदाई भी कराई गई है रिपोर्ट के मुताबिक निषादराज ने उसी समय भगवान राम से अपने महल में एक रात प्रवास करने का आग्रह किया था, लेकिन यहां गंगा पार से तीन किमी दूर स्थित रामचौरा में जाकर एक वृक्ष के नीचे लक्ष्मण और सीता के साथ रात बिताई थी, तब निषादराज ने अपनी सेना के साथ वहां पहरा दिया था इसके बाद भगवान राम ने कुरई घाट पर दूसरा पड़ाव डाला था यहां से आगे मौजूदा कौशाम्बी में भी एक रात श्रीराम ने बिताई थी ।

भगवान राम के वन गमन पथ को लेकर लोगों की जिज्ञासाएं हमेशा से ही रही हैं और लोग यह जानने के लिए हमेशा उत्सुक रहते हैं कि अब उन स्थानों को क्या कहा जाता है और वह कहां हैं, खुशी की बात है कि अनेक लोगों और संस्थाओं के प्रयास द्वारा भगवान राम के वन पथ के स्थानों को चिह्नित कर लिया गया है रामायण में बताया यह कुरई नामक वहीं स्थान है जहां एक भगवान शिव का एक पुराना मंदिर है जिसके पास राम लक्ष्मण और सीता जी ने कुछ देर विश्राम किया था सुबह भगवान महादेव की पूजा अर्चना करने के बाद वह प्रयाग नगरी की ओर निकल गए थे ।

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