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अंग्रेजों के विरुद्ध भारतीय सैनिकों का पहला विद्रोह, कई अंग्रेज अधिकारियों को उतारा था मौत के घाट...

रिपोर्ट-न्यूज़ एजेंसी

वेल्लोर : भारत में 1857 की क्रांति से भी 5 दशक पहले अंग्रेजों का विद्रोह भारतीय सैनिकों ने कर दिया था उस समय इस विद्रोह से अंग्रेजों को बहुत हानि हुई थी बाद में उन्होंने इस विद्रोह को दबा दिया लेकिन बताया जा रहा है कि इस विद्रोह से ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार हिल गई थी, मैसूर के राजा टीपू सुल्तान की मौत के बाद वेल्लोर के किले पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया, इसके बाद इस किले के एक छोटे से हिस्से में टीपू सुल्तान के परिवार को रहने की जगह दी गई थी, 9 जुलाई 1806 को इसी किले में टीपू सुल्तान की बेटी की शादी का आयोजन किया गया था इस शादी समारोह के खत्म होते ही आधी रात के बाद हथियारबंद भारतीय सैनिकों ने अपने ही अंग्रेज अधिकारियों के खिलाफ बगावत कर दी, दोनों तरफ से रातभर गोलीबारी हुई थी आखिरकार 10 जुलाई को वेल्लोर के किले पर भारतीय सैनिकों का कब्जा हो गया था फिलहाल कुछ दिनों बाद दोबारा अंग्रेजों ने इसे अपने कब्जे में ले लिया, जानकार बताते हैं कि टीपू सुल्तान की मौत के 5 साल बाद तक सब कुछ शांत माहौल में चल रहा था इसी बीच 1805 में अंग्रेज अधिकारी सर जॉन क्रैडॉक मद्रास सेना के नए कमांडर इन चीफ बनाये गये जिसके बाद उन्होंने इस पद की जिम्मेदारी संभालते ही सैनिकों से जुड़े कई कानूनों में बदलाव कर दिया, उन्होंने 13 मार्च 1806 को सैनिकों के लिए नया ड्रेस कोड जारी किया, इस कोड के जरिए तीन खास नियम बनाए गए थे पहले नियम में हिन्दू सैनिकों को तिलक लगाने से मना कर दिया गया था वहीं दूसरे बदलाव में मुस्लिम सैनिकों को दाढ़ी काटने का हुक्म दिया गया था, तीसरे नियम में सैनिकों को एक कलगी लगी हैट भी पहनने का आदेश मिला था, इतिहासकार केए मणिकुमार अपनी किताब महान विद्रोह का पूर्वाभास, वेल्लोर विद्रोह 1806 में लिखते हैं यही वो नियम था जिससे अंग्रेजी सेना में शामिल ज्यादातर भारतीय सिपाही नाराज हो गए ।

अंग्रेजों के वफादार इन सैनिकों की नाराजगी इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि इन्होंने पहली बार अपने अधिकारियों के खिलाफ ही हथियार उठा लिए थे, मणिकुमार बताते हैं कि भारतीय हिन्दू सैनिक तिलक लगाना नहीं छोड़ना चाहते थे और मुस्लिम सैनिक दाढ़ी नहीं कटवाना चाहते थे, वहीं नए ड्रेस कोड के तहत जो कलगी लगी हैट पहनने के लिए कहा गया था वो जानवरों के खाल से बनी थी, भारतीय मुस्लिम सुअरों की खाल और हिंदू गाय की खाल से बने इन हैट को नहीं पहनना चाहते थे, इन्हीं वजहों से सैनिकों ने अंग्रेजों के इस हुक्म का विरोध किया लेकिन अंग्रेजों ने विरोध करने वाले सैनिकों पर कोड़े बरसाए और उन्हें सेना से बर्खास्त कर दिया, अंग्रेज अधिकारियों के ड्रेस कोड के खिलाफ पहली बार विद्रोह मई 1806 में हुआ था उस वक्त वेल्लोर में तैनात चौथी रेजिमेंट की दूसरी बटालियन के जवानों ने जानवरों की खाल से बनी नई पगड़ी पहनने से इनकार कर दिया, इसके बाद 6 मई की शाम को अंग्रेजी अफसरों द्वारा सैनिकों की परेड कराई गई, इस दौरान कुछ सैनिकों ने अधिकारियों के आदेश को मानने से इनकार कर दिया, जिससे नाराज कमांडर इन चीफ ने इन सभी को गिरफ्तार करके मद्रास में ट्रायल चलाने का आदेश दिया, जिसके तहत कोर्ट मार्शल कर 10 मुस्लिमों और 11 हिंदुओं के खिलाफ मुकदमा चलाया गया, सरकारी अधिकारियों से माफी नहीं मांगने वाले दो सैनिकों शेख अब्दुल रयमन और अनंतरामन को 900 कोड़े मारने की सजा सुनाई गई थी साथ ही इन दोनों को नौकरी से निकाल दिया गया ।

वहीं माफी मांगने वाले 19 सैनिकों को 500 कोड़े मारने के बाद माफ कर दिया गया, ऐसा करके अंग्रेज अधिकारियों ने राहत की सांस ली उन्हें लगा कि उन्होंने बड़ा खतरा टाल दिया है लेकिन ये उनका भ्रम था, करीब 2 महीने बाद 9 जुलाई को वेल्लोर किले के अंदर टीपू महल में टीपू सुल्तान की बेटी की शादी हो रही थी इस शादी समारोह के दौरान शराब के नशे में एक सिपाही ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के पूरे प्लान की जानकारी सार्वजनिक कर दिया, अंग्रेज अधिकारियों तक ये बात पहुंचती और वह कुछ कार्यवाही करते इससे पहले ही भारतीय सैनिकों ने विद्रोह करने का फैसला कर लिया, शादी समारोह खत्म होते ही सैनिकों ने गोलीबारी शुरू कर दिया, वेल्लोर किले में तोपें गरजने लगीं, भारतीय सैनिकों के गुस्से के शिकार सबसे पहले अंग्रेज अधिकारी कर्नल फैनकोर्ट बन गए थे, किले में उनके आवास के बाहर तैनात गार्ड को गोली मार दी गई, इसके बाद जैसे ही गाउन पहने कर्नल फैनकोर्ट घर से बाहर आए उन्हें भी गोली मार दी गई, 23वीं रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट केरास, 69वीं रेजीमेंट के सार्जेंट जॉन एली को भी विद्रोही सैनिकों ने मौत के घाट उतार दिया था ।

गोलीबारी की आवाज सुनकर 16वीं नेटिव इन्फैंट्री के मेजर आर्मस्ट्रांग कुछ सैनिकों के साथ अपनी बग्घी में सवार होकर घटना की जानकारी लेने के लिए निकले, उन्होंने तेज आवाज में गुर्राते हुए विद्रोही सैनिकों से पूछा कि इस गोलीबारी का क्या मतलब है किले के ऊपर खड़े एक सैनिक ने गोला दागकर इसका जवाब दिया, जिसके मौके पर ही आर्मस्ट्रांग की तुरंत मौत हो गई, इसके बाद बड़ी संख्या में देशी सैनिकों ने अधिकारियों के बैरकों को घेर लिया, वेल्लोर किले के अंदर जहां भी अंग्रेज दिख रहे थे भारतीय सैनिक उन्हें बेरहमी से मौत के घाट उतार रहे थे, रातों रात 15 अंग्रेज अधिकारी और 119 अंग्रेज सैनिक मारे गए थे, वहीं 10 जुलाई की सुबह भारतीय सैनिकों ने वेल्लोर के किले पर मैसूर सुल्तान का ध्वज फहरा दिया, जैसे ही इस घटना की सूचना वेल्लोर किले से 25 किलोमीटर दूर अर्कोट पहुंची तो अंग्रेज अधिकारियों के कान खड़े हो गए, विद्रोह को दबाने के लिए कर्नल गिलेस्पी अगले दिन सुबह 9 बजे 19वीं और 7वीं मद्रास कैवलरी के एक स्क्वाड्रन के साथ वेल्लोर पहुंच गए, अर्कोट से आई सेना ने किले पर हमला कर दिया, हमला इतना जबरदस्त था कि विद्रोह कर रहे भारतीय सैनिक वहां से भागने लगे, जिसका फायदा उठाकर अंग्रेजी कर्नल द्वारा कुछ सैनिकों को बंदी बना लिया गया ।

वहीं सैकड़ों सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया था, अंग्रेजों के इस हमले में मारे गए भारतीयों की संख्या को लेकर इतिहासकारों की अलग अलग राय हैं, डब्लू जे विल्सन के मुताबिक हमले के समय किले में 1,700 भारतीय सैनिकों की तैनाती थी जिसमें से 879 की मौत हो गई थी, वहीं जनरल हरकोर्ट के मुताबिक वेल्लोर की जेल में 466 सैनिकों को कैद करके रखा गया था, इसके अलावा इस विद्रोह से जुड़े आरोपों में 787 सैनिकों को देश के अलग अलग जेलों में कैद करके रखा गया,
इस विद्रोह खत्म होते ही सैनिकों के खिलाफ कर्नल गिलेस्पी ने कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के आदेश दिए थे बाद में 12 जुलाई 1806 को ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक स्पेशल कमेटी को इस मामले में जांच के आदेश जारी किया, मेजर जनरल पैटर को इस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था, कई अधिकारियों ने ये महसूस किया कि भारतीय और ब्रिटिश सैनिकों की दोस्ती के बिना कंपनी की सुरक्षा संभव नहीं है ।

इसी वजह से चेतावनी देकर 516 विद्रोही सैनिकों को छोड़ दिया गया, इन सभी सैनिकों को वापस नौकरी पर भी रख लिया गया था जांच कमेटी की रिपोर्ट और गवाही के आधार पर विद्रोह में शामिल 6 भारतीयों को कोर्ट मार्शल में मौत की सजा सुनाई गई, जबकि 3 लोगों को आजीवन कारावास और एक को 10 साल कैद की सजा सुनाई गई, कमेटी ने विद्रोह को दबाने वाले सैनिकों और अधिकारियों की सराहना की गई उन्हें बड़े तोहफे देकर सम्मानित किया गया, 69वीं रेजिमेंट के सार्जेंट ब्रैडी का अंग्रेज सरकार ने प्रमोशन कर दिया, वहीं ईस्ट इंडिया कंपनी ने कर्नल गिलेस्पी को विद्रोही सैनिकों से निपटने के लिए करीब 24,500 रुपए और सार्जेंट ब्रैडी को करीब 2,800 रुपए का तोहफा दिया था 7वीं रेजिमेंट के 107 सैनिको का वेतन बढ़ा दिया गया था ।

सैन्य इतिहासकार जॉन विलियम और इतिहासकार एसएस फर्नेल ने इस सवाल का जवाब दिया है कि इन इतिहासकारों के मुताबिक इस विद्रोह को शुरू होने की मुख्य वजह भले ही सैनिकों का नया ड्रेस कोड रहा हो, लेकिन यह अंग्रेज सरकार के कई दूसरे फैसलों का नतीजा था, इनमें से कुछ इस तरह बताये गये हैं, भारतीय और अंग्रेजी सैनिकों के बीच लंबे समय से भाषाई और नस्लीय भेदभाव था, सैनिकों के ड्रेस कोड को लेकर बने नए नियम के बाद जैसे ही विद्रोह भड़का भेदभाव से पीड़ित भारतीय सैनिक इसमें शामिल हो गए, फ्रांसीसी सेना के अधिकारियों ने भारतीय सैनिकों को ब्रिटिश सेना के खिलाफ भड़काया था इसके बाद ही भारतीय सैनिकों ने इतनी हिम्मत जुटाई थी ।

वहीं टीपू के भतीजे फतेह अली ने मराठों से संपर्क कर इस हमले की पूरी तैयारी किया था, कुछ सैन्य अधिकारियों ने ईसाई मिशनरियों को भी इस विद्रोह के लिए जिम्मेदार ठहराया था, इसी विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने नई रेवेन्यू पॉलिसी बनाई थी जिसके चलते भारतीय लोग परेशान हो गए थे, सेना में काम करने वाले भारतीय लोगों में ब्रिटिश सरकार के प्रति बेहद गुस्सा पनप गया था अब वेल्लोर लमिलनाडु प्रदेश का एक जिला है ।

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