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पढ़िए आजादी की रोचक कहानी, आखिर राजगुरू ने असिस्टेंट सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस को क्यों मारी थी गोली...

ब्यूरो रिपोर्ट-सुरेश सिंह

लखनऊ : आजादी के दीवानों की कहानी सुनने में जितनी दिलचस्प लगती है उतनी ही अनोखी भी लगती है मां भारती के मतवालों की कुर्बानी से ही हमें अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिली है आज ऐसी ही एक रोचक घटी घटना का हम अपनी ख़बर में ज़िक्र करने वाले हैं जो स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह से जुड़ा हुआ है बताते चलें कि 17 दिसंबर 1928 को सांडर्स की मौत का दिन क्रांतिकारियों ने तय किया था उस दिन 4 बजकर 3 मिनट का समय हुआ था कि सांंडर्स अपनी मोटर साइकिल पर बैठकर बाहर निकला, वो कुछ ही दूर गया होगा कि भगत सिंह और राजगुरु ने सांंडर्स को अपनी गोलियों का शिकार बना लिया, इस योजना का संचालन एवं उनको पीछे से बैकअप देने का काम चंद्रशेखर आजाद के कंधों पर था, उन्होंने भगत सिंह और राजगुरु की तरफ बढ़़ने वाले सिपाही चानन सिंह को अपनी गोली का निशाना बनाकर उनके लिए रास्ता साफ कर दिया था, सांडर्स की हत्या से ब्रिटिश अधिकारी डर गए थे क्योंकि सांडर्स कोई मामूली अंग्रेज अधिकारी नही था बल्कि पुलिस विभाग का असिस्टेंट सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस था जिसकी दिन दहाड़े पुलिस मुख्यालय के बाहर हत्या हो जाने से अंग्रेजी सरकार पूरी तरह से बौखला गई थी लेकिन सांडर्स की हत्या के बाद भगत सिंह, राजगुरु और इनके अन्य साथी पुलिस की नजरों में धूल झोंक कर लाहौर से निकलने में कामयाब हो गए थे ।

सांडर्स की हत्या के बाद क्रांतिकारी जिस प्रकार से अनोखे ढंग से बाहर निकले थे इतिहास का वह पन्ना भी बेहद रोचक है, भगत सिंह एक सरकारी अधिकारी के रूप में ट्रेन के प्रथम श्रेणी डिब्बे में श्रीमती दुर्गा भाभी के साथ बैठे थे जो भगत सिंह के साथी क्रांतिकारी शहीद भगवतीचरण बोहरा की पत्नी थीं दुर्गा भाभी मूलतः प्रयागराज यानी अब के कौशाम्बी जिले के शहजादपुर गांव की रहने वाली थीं, दुर्गा भाभी अपने तीन वर्षीय पुत्र को लेकर भगत सिंह के साथ बैठी थी वहीं क्रांतिकारियों के शार्प सूटर राजगुरु उनके अर्दली बन गए थे, इस तरह भगत सिंह लाहौर से कलकत्ता पहुंचे, चंद्रशेखर आज़ाद साधुु के भेष में एक यात्री दल के साथ मथुरा की ओर निकल गए थे, भगत सिंह के दल हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना की तरफ से दो चिट्ठियां जारी की गई थीं ये यहां पर संजो कर रखी गई हैं इनमें पहली चिट्ठी के अंश कुछ इस प्रकार से थे, यह सोचकर कितना दु:ख होता है कि जेपी सांडर्स जैसे एक मामूली पुलिस अफसर के कमीने हाथों ने देश की तीस करोड़ जनता द्वारा सम्मानित एक नेता पर हमला करके उनके प्राण ले लिए, राष्ट्र का यह अपमान हिंदुस्तानी नवयुवकों और मर्दों को चुनौती थी आज संसार ने देख लिया कि हिंदुस्तान की जनता निष्प्राण नहीं हो गई है उनका खून जम नहीं गया, वे अपने राष्ट्र के सम्मान के लिए प्राणों की बाजी लगा सकते हैं, जेपी सांडर्स मारा गया है लाला लाजपत राय का बदला ले लिया गया है ।

यह सीधी राजनीतिक प्रकृति की बदले की कार्यवाही थी भारत के महान बुजुर्ग लाला लाजपत राय पर किए गए अत्यंत घृणित हमले से उनकी मृत्यु हुई थी यह देश की राष्ट्रीयता का सबसे बड़ा अपमान था और अब इसका बदला ले लिया गया है इसके बाद सभी से यह अनुरोध है कि हमारे शत्रु पुलिस को हमारा पता-ठिकाना बताने में किसी किस्म की सहायता नही दें, अब आते हैं असली कहानी पर बात 1928 की है जब इंडिया में अंग्रेजी हुकूमत थी उन दिनों 30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन भारत आया था जिसके विरोध में पूरे देश में आग भड़क उठी थी, पूरे देश में साइमन कमीशन वापस जाओ के नारे लगे थे इस विरोध की अगुवाई पंजाबी शेर लाला लाजपत राय कर रहे थे और लाहौर में 30 अक्टूबर 1928 को एक बड़ी घटना घटी जब लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन का विरोध कर रहे युवाओं को बेरहमी से पीटा गया, पुलिस द्वारा लाला लाजपतराय की छाती पर निर्ममता से लाठियां बरसाईं गई जिससे वो बुरी तरह घायल हो गए थे और इस कारण 17 नवंबर 1928 को उनकी मौत हो गई, इस लाठीचार्ज का आदेश क्रूर सुप्रीटेंडेंट जेम्स ए स्कॉट ने दिया था लाजपतराय की मृत्यु से सारा देश भड़क उठा था और चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और इनके अन्य क्रांतिकारियों ने लाला जी की मौत का बदला लेने की प्रतिज्ञा ली थी, लाला लाजपत राय जी के शहीद होने के ठीक एक माह बाद 17 दिसंबर 1928 को स्कॉट की हत्या के लिए निर्धारित किया गया था लेकिन पहचान में थोड़ी सी चूक हो गई, सुप्रीटेंडेंट जेम्स ए स्कॉट की जगह असिस्टेंट सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस जॉन पी सांडर्स क्रांतिकारियों का निशाना बन गए ।

सांडर्स जब लाहौर के पुलिस हेडक्वार्टर से निकल रहे थे तभी भगत सिंह और राजगुरु ने उन पर गोली चला दी, भगत सिंह पर कई किताब लिखने वाले जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर चमन लाल के अनुसार सांडर्स पर सबसे पहले गोली राजगुरु ने चलाई थी उसके बाद भगत सिंह ने सांडर्स को गोली मारी थी अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या के बाद दोनों लाहौर से निकल लिए, अंग्रेजी हुकूमत सांडर्स की सरेआम हत्या से बौखला गई थी सांडर्स की हत्या का दोषी तीनों को माना गया था जिसे लाहौर षडयंत्र केस माना गया था, तीनों पर सांडर्स को मारने के अलावा देशद्रोह का केस चला और साथ ही तीनों को दोषी माना गया, 7 अक्टूबर 1930 को फैसला सुनाया गया कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर लटकाया जाएगा, इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत की मनमानिया के चलते फांसी के मुकद्दर दिन से पहले ही रात के अंधेरे में तीनों को फांसी दे दी गई ।
historyfacts : Bhagat Singh Shandars Attack

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