रिपोर्ट- ईश्वर दीन साहू
प्रयागराज : जिला कृषि रक्षा अधिकारी श्री इन्द्रजीत यादव ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से बताया है कि अक्टूबर का महीना फसल के लिये अत्यन्त संवेदनशील होता है। किसान भाई इस समय निरन्तर अपने खेतों की निगरानी करते रहें। खेतों में नमी होने के कारण धान की फसल में कीट/रोग लगने की सम्भावना बनी रहती है, जिसमें धान का कण्डुआ रोग अधिक नमी एवं नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का अधिक प्रयोग से अधिकांशतः होता है। यह रोग एक फफंूद के कारण लगता है। जिसका नाम अस्टिलैजिन्वाइडिया वाइरेन्स है। यह बीज जनित मृदा जनित और वायुजनित रोग है। किसान भाई इसे हल्दी रोग भी कहते हैं। इस रोग में धान की बाली के दाने पीले और काले रंग के आवरण से ढक जाते हैं, जिनकों हाथ से छूने पर हाथ में पीले काले अथवा हरे रंग के पाउडर जैसे रोग के स्पोर लग जाते हैं, जो हवा में उड़कर धान के दूसरे पौधों को भी प्रभावित कर देते हैं।
पारिस्थितिकीय प्रबन्धन के अन्तर्गत इस रोग के नियंत्रण हेतु थीरम 75% WS 2.50 ग्राम प्रति किग्रा0 बीज के साथ बीज उपचार करके ही बुआई करें। अगेती फसल में यह रोग पिछैती फसल की तुलना में कम लगता है। फसल की कटाई के समय प्रभावित दानांे को अलग कर लेना चाहिये। खेत की मेंड़ों और सिचाई की नालियों को खरपतवार रहित बना देना चाहिये ताकि रोग के कारकों को दूसरा विकल्प न मिल सके। नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का अधिक प्रयोग नही करना चाहिये।
रासायनिक नियंत्रण के अन्तर्गत कार्बेण्डाजिम 50% WP 500 ग्राम प्रति हे0 की दर से 600-750 ली0 पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये। कापर हाइड्राक्साइड 77% WP 02 कि0ग्रा0 प्रति हे0 की दर से 600-750 ली0 पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये। प्रोपिकोनाजोल 25% EC 500 मि0ली0 प्रति हे0 की दर से 600-750 ली0 पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये।
किसान भाई अपने फसल की सतत निगरानी करते रहें, यदि फसल में कण्डुआ रोग के लक्षण दिखे तो तत्काल धान की उस बाली को अलग करके जला दें अथवा जमीन में गाड़ दें, जिससे रोग का प्रसार कम से कम हो सके। फसल में किसी भी प्रकार के कीट/रोग के प्रकोप की दशा में अपने विकास खण्ड के कृषि रक्षा इकाई, प्रभारी से अथवा अधोहस्ताक्षरी के मो0 नं0-7839882320 पर सम्पर्क कर सकते हैं।
0 Comments