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जानिए मूरतगंज ब्लाक में स्थित पुराने पक्के तालाब की कहानी, तीन सौ साल पहले हुआ था इसका निर्माण...

ब्यूरो रिपोर्ट-सुरेश सिंह 

कौशाम्बी : जनपद में ऐतिहासिक धरोहरों की भरमार है यह एक पौराणिक नगरी है जिसका वर्णन कई धर्म ग्रंथों में भी मिलता है यहां कई स्थानों पर छोटी एवं बड़ी कई ऐतिहासिक धरोहरें मौजूद हैं जिन्हें प्रशानिक जिम्मेदारों द्वारा दरकिनार करने का काम किया गया है, मूरतगंज ब्लॉक परिसर के बगल में एक पुराना पक्का ऐतिहासिक तालाब मौजूद है, तीन सौ साल पुराने इस तालाब में किनारे किनारे लगे नक्कासीदार पत्थर आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं, बताया जा रहा है कि अंग्रेजों के जमाने में खुदवाए गए इस तालाब की मरम्मत के लिए जिले का कोई भी समाजसेवी, जनप्रतिनिधि एवं अधिकारी आगे नहीं आ रहा है ।

स्थानीय लोगों की शिकायत पर बस खानापर्ति  करा देते हैं, बतादें कि तीन सौ साल पहले 12 गांवों के जमींदार रहे सेठ चमरूलाल ने अंग्रेजी हुकूमत के दौरान मूरतगंज में इस ऐतिहासिक पक्के तालाब का निर्माण कराया था, जिले में नक्कासीदार पत्थरों से सजे इस तालाब को देखने के लिए दूर दराज से लोग आते हैं, तत्कालीन समय में इस तालाब पर अंग्रेजों की फौज और मुसाफिरों का पड़ाव हुआ करता था क्योंकि इसी के बगल से जीटी रोड भी जाती है यह रोड भी ऐतिहासिक है, तालाब की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उत्तर दिशा में शिव मंदिर, दक्षिण में गायों के पानी पीने का घाट, पूरब में महिलाओं के स्नान के लिए जनाना घाट, पश्चिम में राम जानकी मंदिर का निर्माण कराया गया है ।

पानी से साल भर लबालब भरा रहने वाले इस तालाब के पानी का उपयोग नहाने, कपड़ा धुलने, पशु पक्षियों को पीने के काम में आता था, सेठ चमरुलाल की मौत के बाद उनके बेटे रघुनाथ सहाय को राम जानकी मंदिर का अध्यक्ष बनाया गया और इनके बाद सेठ मिठाई लाल ने तालाब की मरम्मत और देखरेख की बागडोर संभाली थी, इन तीनों की मौत के बाद अब मिठाई केसरवानी के पुत्र रमेश चंद्र केसरवानी राम जानकी मंदिर की जिम्मेदारी निभा रहे हैं, जमींदारी खत्म हो जाने के बाद अब सेठ के परिवार की हैसियत भी तालाब के जीर्णोद्धार की नहीं रह गई है, वक्त की मार के चलते तालाब की हालत दयनीय होती जा रही है, जिले के कुछ जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा कभी कभी इस तालाब थोड़ा बहुत मरम्मती करण का कार्य करा दिया जाता है ऐसा अक्सर दुर्गा पूजा के समय कराया जाता है जो सिर्फ दिखावे के लिए होता है मूर्ति विसर्जन के बाद चारों तरफ गंदगी और फैल जाती है ।

स्थानीय लोग बताते है कि कुछ दिनों पहले जनप्रतिनिधियों के थोड़े बहुत प्रयास से तालाब के मरम्मतीकरण का कार्य किया गया था, इसकी साफ सफाई भी कराई गई थी अब इसी तालाब में दुर्गा पूजा के बाद मूर्तियों का विसर्जन कराया जाता है, सबसे बड़ी लापरवाही यह है कि मूर्ति विसर्जन के बाद तालाब की साफ सफाई नहीं कराई जाती है, भरवारी नगर पालिका से मूरतगंज के जोड़े जाने के बाद भी तालाब में गंदगी का अंबार लगा रहता है लोगों का आरोप है कि तालाब के रख रखाव और उसकी स्वच्छता पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है, जिम्मेदारों को इसे और सजाना और संभालना चाहिए यह ऐतिहासिक धरोहर है जो स्थानीय पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकता है ।

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