ब्यूरो रिपोर्ट-सुरेश सिंह
प्रयागराज : जनपद में स्थित चंद्रशेखर आजाद पार्क जिसे ब्रिटिश काल में अल्फ्रेड पार्क कम्पनी बाग कहा जाता था इसी पार्क में आज भी वो जगह मौजूद है जहां हिंदुस्तान के एक अज़ीम क्रन्तिकारी लड़ते हुए शहीद हो गया थे, बताते चलें कि 27 फ़रवरी 1931 में इसी अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजी पुलिस की गोली लगने से चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत हुई थी इससे एक दिन पहले ही अशफ़ाक़उल्लाह खान को फांसी हो चुकी थी काकोरी कांड और उसके बाद 1929 में बम कांड के बाद पुलिस आज़ाद को चारों तरफ ढूंढ रही थी, चंद्रशेखर आज़ाद के सबसे क़रीबी विश्वनाथ को 11 फरवरी 1931 को कानपुर से गिरफ्तार कर लिया गया, विश्वनाथ की गिरफ्तारी के बाद आज़ाद 27 फरवरी 1931 की सुबह इलाहाबाद पहुंचे जहां इलाहाबाद के कटरा मुहल्ले में भवानी सिंह से मिले, उनसे मिलने के बाद अल्फ्रेड पार्क यानी अब का चन्द्रशेखर आज़ाद पार्क की ओर निकल पड़े जहां दूसरे क्रांतिकारियों के साथ मीटिंग होनी थी, उन्हीं के एक जानकार वीरभद्र तिवारी ने ग़द्दारी की और उनके आने जाने की सारी ख़ुफ़िया जानकारी अंग्रेजों तक पंहुचा दी, आजाद की जैसे ही पार्क में मीटिंग शुरू ही अंग्रेजों ने हमला कर दिया, आज़ाद पर पहली गोली सुप्रीटेंडेंट जॉन नाट बावर ने चलाई, गोली आज़ाद के जांघ पर लगी थी आज़ाद पर दूसरी गोली एसपी ठाकुर विश्ववेश्वर सिंह ने चलाई गोली जो आज़ाद के दाहिने हाथ पर लगी, आज़ाद ने बाए हाथ में पिस्तौल ली और दोनों पर हमला कर दिया जिसके बाद आजाद की गोली नॉट बावर की कलाई पर लगी और उसकी कलाई टूट गई, दूसरी गोली एसपी विश्वेश्वर सिंह के जबड़े में मारी जिसका जबड़ा टूट गया, आजाद के इस मुंहतोड़ मुकाबले से अंग्रेज पुलिस पीछे हट गई जिस पर आज़ाद ने अपने साथियों को कहा तुम लोग यहां से फौरन निकलो और मै इन अंग्रेजों का सामान करुंगा, आजाद बड़ी ही दिलेरी से एक पेड़ के पीछे छिपकर अकेले ही लड़ते रहे, क़रीब 20 मिनट तक गोलियां चलती रही पुलिस की एक के बाद एक कई गोलियां आज़ाद के जिस्म को छलनी करती रही, आख़िरकार आज़ाद हमेशा के लिए शहीद हो गए ।
अंग्रेजों ने कूटरचित तरीके से चंद्रशेखर आजाद के खिलाफ कर्नलगंज थाने में झूठी एफआईआर दर्ज कराई थी जिसको आधार बनाकर पार्क में एक मुठभेड़ दिखाई गई थी और इसी मुठभेड़ में चंद्रशेखर आजाद को गोली मारी गई थी उन दिनों आजाद ब्रिटिश हुकूमत के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गए थे, बताया जाता है कि चंद्रशेखर जिस पेड़ के नीचे शहीद हुए थे अंग्रेजों ने रातों-रात उस पेड़ को वहां से कटवा कर हटवा दिया था उनका मानना था कि लोग यहां उनकी समाधि बनाकर उन्हें नमन करने लगेंगे, चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ ज़िले के एक गांव में हुआ था, पढ़ाई के लिए वह वाराणसी आ गए थे और 1921 में बनारस के सत्याग्रह आंदोलन के दमन ने उनकी ज़िंदगी में एक नया मोड़ लाकर रख दिया इसी आंदोलन के बाद से उनकी अंतरात्मा ने उन्हें स्वाधीनता संग्राम के लिए तैयार कर दिया ।
History facts : Chandrashekhar Azad Indian Swadhinta Warriors British Economy
0 Comments