रिपोर्ट-अशीष विश्वकर्मा
महोबा : जनपद में ग्यारस एकादशी के पावन अवसर पर बुंदेलखंड के महोबा जिले के चरखारी क्षेत्र में पारंपरिक “दिवारी” उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया। सुबह से ही गाँवों में रौनक का माहौल रहा। ढोल-नगाड़ों की थाप पर लोग झूम उठे और युवक-बुजुर्ग परंपरागत पोशाक में लट्ठ लेकर मिट्टी के अखाड़ों में उतरे। यह अनोखा खेल “दिवारी” बुंदेलखंड की पहचान बन चुका है। यह सिर्फ खेल नहीं, बल्कि ताकत, साहस और भाईचारे का प्रतीक माना जाता है। गाँव-गाँव से लोग चरखारी पहुँचे और परंपरा को करीब से देखने के लिए उत्साहित नज़र आए। स्थानीय बुजुर्गों ने बताया कि हर साल ग्यारस के दिन यहाँ दिवारी खेली जाती है।
लोग दूर-दूर से आते हैं। यह हमारी पहचान और हमारी विरासत है। गाँव की गलियों में बच्चों की टोली, महिलाओं की सहभागिता और बुजुर्गों के जयकारों से पूरा क्षेत्र गूँज उठा। मिट्टी की खुशबू और ढोल की थाप ने वातावरण को भक्तिमय और रोमांचक बना दिया। महोबा का चरखारी क्षेत्र आज भी अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजे हुए है। “ग्यारस की दिवारी” इस बात का प्रमाण है कि बुंदेलखंड की मिट्टी में आज भी परंपरा, संस्कृति और एकता की खुशबू बसी हुई है।
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