ब्यूरो रिपोर्ट-सुरेश सिंह
लखनऊ : बॉलीवुड के मशहूर पार्श्वगायक उदित नारायण आज 70 वर्ष के हो गए। 1 दिसंबर 1955 को बिहार के सुपौल ज़िले के एक साधारण किसान परिवार में जन्मे उदित नारायण ने कठिन संघर्षों और कड़ी मेहनत के दम पर भारतीय संगीत जगत में अपनी अनूठी पहचान बनाई। उदित नारायण के पिता किसान थे और चाहते थे कि बेटा पढ़-लिखकर डॉक्टर या इंजीनियर बने। लेकिन उदित का मन बचपन से ही गायकी में रमता था। उन्हें संगीत की शुरुआती शिक्षा उनकी मां से मिली, जो गांव के मेलों और विभिन्न कार्यक्रमों में गाया करती थीं। मां के प्रोत्साहन से ही उदित भी गांव-खेड़ों के आयोजनों में सुर बिखेरते थे। मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उदित नारायण नेपाल चले गए। काठमांडू के रेडियो नेपाल में उन्हें लोकगायक के रूप में 100 रुपये मासिक वेतन पर नौकरी मिली, जो लगभग आठ वर्ष तक चली। आर्थिक तंगी के चलते उन्होंने काठमांडू के होटलों में रात के समय लाइव सिंगिंग भी की और साथ ही नाइट कॉलेज से इंटर की पढ़ाई पूरी की।
ग्रेजुएशन के दौरान उन्हें भारतीय दूतावास से संगीत की स्कॉलरशिप मिली और वर्ष 1978 में वे मुंबई पहुंचे। भारतीय विद्या भवन में शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेते हुए उदित नारायण ने फिल्म इंडस्ट्री के संगीतकारों से संपर्क बनाने की लगातार कोशिशें जारी रखीं। कई बार उन्हें वॉचमैन के कहने पर ही लौटना पड़ता था, लेकिन उनका विनम्र व्यवहार और तपस्या संगीतकारों के बीच उनकी सकारात्मक छवि बना चुका था। साल 1980 में संगीतकार राजेश रोशन ने उन्हें फिल्म उन्नीस-बीस में प्लेबैक का पहला मौका दिया। इस गीत में उनके साथ उषा मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी जैसे दिग्गज भी थे। रफ़ी साहब से मिली पहली प्रशंसा और आशीर्वाद उदित नारायण के लिए बड़ी प्रेरणा साबित हुई।
हालांकि शुरुआती दौर में उन्हें पहचान पाने में वक्त लगा, लेकिन साल 1988 ने उनका जीवन बदल दिया। आनंद–मिलिंद ने उन्हें कयामत से कयामत तक के सभी गीत गाने के लिए साइन किया। फिल्म के गाने धमाकेदार तरीके से हिट हुए और पूरे देश में उदित नारायण की आवाज़ छा गई। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 90 के दशक से 2000 के शुरुआती वर्षों तक उन्होंने अनगिनत सुपरहिट गाने दिए। इस समय भारतीय संगीत जगत में उदित नारायण का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है।
0 Comments