ब्यूरो रिपोर्ट-सुरेश सिंह
मुम्बई : पंजाब के एक छोटे से गांव से निकलकर बॉलीवुड के ही-मैन बने धर्मेंद्र का सफर आज भी लाखों युवाओं को प्रेरित करता है। सादगी और संघर्ष से भरे उनके शुरुआती दिनों की एक घटना जीवन में बड़े सपनों की चमक पैदा करती है। धर्मेंद्र बताते हैं कि उनके गांव में ट्रेन नहीं आती थी। जब पहली बार पता चला कि पास ही साहनेवाल रेलवे स्टेशन है, तो उनके मन में असीम उत्साह जाग उठा। खेल-कूद खत्म करने के बाद वे अक्सर स्टेशन जाकर घंटों बैठते शांत, अकेले, लेकिन सपनों से भरे हुए। कॉलेज जाने का पहला कदम भी इसी स्टेशन से शुरू हुआ। उनके जीवन में फगवाड़ा भी एक खास स्थान रखता है। यहाँ न सिर्फ उनकी चाची रहती थीं, बल्कि परिवार के अपनत्व ने इस जगह को भावनाओं की गर्माहट से भर दिया था। यही वजह थी कि फगवाड़ा धर्मेंद्र के दिल में एक एहसास बनकर बस गया।
फिल्मों के प्रति उनका प्रेम उन्हें फगवाड़ा से जालंधर के ‘ज्योति सिनेमा’ तक खींच लाता था। लेकिन उन दिनों बसों के समय और सीमित साधनों के कारण अक्सर फिल्म की आखिरी रील छूट जाती। कई बार ठंडी रातों में लौटती बस की लोहे की सीढ़ी पकड़कर वे सफर करते, ताकि घर देर से न पहुँचे और डांट न खानी पड़े। उनके संघर्ष भरे ये छोटे कदम ही आगे चलकर बड़े सपनों की उड़ान बने। धर्मेंद्र मानते हैं कि साहनेवाल रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म, फगवाड़ा की गलियाँ और जालंधर के सिनेमाघर तक की दौड़—यही वे क्षण थे जिन्होंने उनके भीतर फिल्मों के प्रति जुनून को और गहरा किया। यही चाह उन्हें मुंबई तक ले आई और आगे चलकर हिंदी सिनेमा के इतिहास में दर्ज कर गई।
धर्मेंद्र की यह कहानी सिर्फ एक सुपरस्टार की यादें नहीं, बल्कि उन तमाम युवाओं की प्रेरणा भी है जो छोटे शहरों से बड़े सपनों को आकार देने निकलते हैं। विश्वास, मेहनत और धैर्य के बूते वे भी अपनी मंज़िल पा सकते हैं—जैसे धर्मेंद्र ने अपने सपनों को साकार किया।
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